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स्यो॒ना पृ॑थिवि भवानृक्ष॒रा नि॒वेश॑नी। यच्छा॑ नः॒ शर्म॑ स॒प्रथः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

syonā pṛthivi bhavānṛkṣarā niveśanī | yacchā naḥ śarma saprathaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स्यो॒ना। पृ॒थि॒वि॒। भ॒व॒। अ॒नृ॒क्ष॒रा। नि॒ऽवेश॑नी। यच्छ॑। नः॒। शर्म॑। स॒ऽप्रथः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:22» मन्त्र:15 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:6» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:5» मन्त्र:15


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

यह भूमि किसलिये और कैसी है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - जो यह (पृथिवी) अति विस्तारयुक्त (स्योना) अत्यन्त सुख देने तथा (अनृक्षरा) जिसमें दुःख देनेवाले कण्टक आदि न हों (निवेशनी) और जिसमें सुख से प्रवेश कर सकें, वैसी (भव) होती है, सो (नः) हमारे लिये (सप्रथः) विस्तारयुक्त सुखकारक पदार्थवालों के साथ (शर्म्म) उत्तम सुख को (यच्छ) देती है॥१५॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है, कि यह भूमि ही सब मूर्त्तिमान् पदार्थों के रहने की जगह और अनेक प्रकार के सुखों की करानेवाली और बहुत रत्नों को प्राप्त करानेवाली होती है, ऐसा ज्ञान करें॥१५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

इयं भूमिः किमर्था कीदृशी चेत्युपदिश्यते।

अन्वय:

येयं पृथिवी स्योनाऽनृक्षरा निवेशनी भवति सा नोऽस्मभ्यं सप्रथः शर्म्म यच्छ प्रयच्छति॥१५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (स्योना) सुखहेतुः। इदं ‘सिवु’धातो रूपम् सिवेष्टेर्यू च। (उ०३.९) अनेन नः प्रत्ययष्टेर्यूरादेश्च। स्योनमिति सुखनामसु पठितम्। (निघं०३.६) (पृथिवि) विस्तीर्णा सती विशालसुखदात्री भूमिः। अत्र पुरुषव्यत्ययः। (भव) भवति। अत्र व्यत्ययो लडर्थे लोट् च। (अनृक्षरा) अविद्यमाना ऋक्षरा दुःखप्रदाः कण्टकादयो यस्यां सा (निवेशनी) निविशन्ति प्रविशन्ति यस्यां सा (यच्छ) यच्छति फलादिभिर्ददति। अत्र व्यत्ययो लडर्थे लोट्। द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घश्च। (नः) अस्मभ्यम् (शर्म) सुखम् (सप्रथः) यत् प्रथोभिर्विस्तृतैः पदार्थैः सह वर्त्तते तत्। यास्कमुनिरिमं मन्त्रमेवं व्याख्यातवान्-सुखा नः पृथिवि भवानृक्षरा निवेशन्यृक्षरः कण्टक ऋच्छतेः। कण्टकः कन्तपो वा कृन्ततेर्वा कण्टतेर्वा स्याद् गतिकर्म्मण उद्गततमो भवति। यच्छ नः शर्म्म यच्छन्तु शरणं सर्वतः पृथु। (निरु०९.३२)॥१५॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्भूगर्भविद्यया गुणैर्विदितेयं भूमिरेव मूर्त्तिमतां निवासस्थानमनेकसुखहेतुः सती बहुरत्नप्रदा भवतीति वेद्यम्॥१५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ही भूमी सर्व मूर्तिमान पदार्थ राहण्याचे स्थान असून, अनेक प्रकारचे सुख देणारी व अनेक रत्ने प्राप्त करून देणारी आहे हे माणसांनी जाणावे. ॥ १५ ॥